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हास्य-व्यंग्य >> बात ये है कि

बात ये है कि

मनोहर श्याम जोशी

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6659
आईएसबीएन :978-81-8143-842

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बात यह है कि... जोशी जी की इस नायाब किताब में पाठक ऐसे गद्य से परिचित होंगे जो अपने समय के महाभारत का न सिर्फ चश्मदीद बयान है बल्कि हमारे अपने वक़्त की तहरीर भी है...

Baat ye Hai ki - An Hindi Book by Manohar Shyam Joshi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बात यह है कि...किताब का शीर्षक, कुछ ख़ास तरह की स्मृतियों से छनकर आया है। दरअसल, मनोहर श्याम जोशी जब किसी विषय, मुद्दे या किसी संदर्भ पर ठिठकते, थोड़ा सोचते और फिर बोलते - बात यह है कि...। यह उनका बाज वक़्ती (कभी-कभार का) तकिया कलाम था। ‘बात ये है कि...’ कहते हुए वो दुनिया-जहान के किसी भी विषय, किसी भी सूत्र, किसी भी सोच, किसी भी मसले, किसी भी किताब या सेलीब्रेटी या सियासत या समाज आदि पर बेबाक और बेतक़ल्लुफ़ लहज़े, में बोल सकते थे। वो अपने आपमें इनसाइक्लोपीडिया थे। खिलंदड़ी ज़बान के जरिए, वो सामाजिक मूल्यहीनता के धुर्रे उड़ा देते थे। फ़ैशन, फिल्म, सेक्स, सेनसेक्स, टी.वी. सीरियल से लेकर पुस्तक, कविता, उपन्यास, नाटक, यहाँ तक कि अध्यात्म पर भी किसी अध्येता, किसी चिंतक, किसी समाजशास्त्री और किसी आलोचक की तरह साधिकार लिख सकते थे।

गद्य में वो अपनी तरह के ‘कबीर’ थे। साप्ताहिक हिन्दुस्तान में संपादक पद पर रहते हुए उन्होंने जिस विषयगत समझ और भाषाई शऊर के साथ जो स्तंभ लिखे, उनकी कई तहें थी। एक स्तर पर वो उद्वेलित करते तो दूसरे स्तर पर मन में हल्की-सी गुदगुदी का अहसास भी पैदा होता।

मनोहर श्याम जोशी घोर पढ़ाकू थे और वो दुनिया जहान की जानकारियाँ अपने पाठकों से शेयर करने का जज़्बाती भाव रखते थे। हिन्दी के युवा पाठक उनको उपन्यासकार, कथाकार, सीरियल लेखक (बुनियाद सीरियल) के रूप में यकीनन जानते हैं, वो बहुत बड़े स्तंभ लेखक भी थे, इस बारे में उनकी जानकारियाँ कम ही होंगी।
बात यह है कि...वाल्यूम में प्रकाशित जोशी जी की इस नायाब किताब में पाठक ऐसे गद्य से परिचित होंगे जो अपने समय के महाभारत का न सिर्फ चश्मदीद बयान है बल्कि हमारे अपने वक्त की तहरीर भी है।

इन स्तंभ लेखों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये कभी पुराने नहीं होंगे और हमेशा सामने खड़े समय से टकराते रहेंगे।


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